पश्चिम लौटा पूरब में, पूरब खो गया पश्चिम में

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Jaipur

अशोक शर्मा
भारत के 75 प्रतिशत लोग पश्चिम का अंधानुकरण करके अपने रिश्तों को खो चुके हैं जबकि पश्चिम के लोग इन्हीं रिश्तों के अभाव में खोखली हो गई अपनी जिंदगी को पुनः प्राणवान करने की कोशिश में रिश्तों को सहलाना शुरु कर चुके हैं। वे अब इन्हीं रिश्तों में ज़िन्दगी का रस खोजते हुए उनसे तेजी से जुड रहे हैं। विश्व का सर्वाधिक भौतिकवादी देश अमेरिका के युवा अब अपने माता-पिता से जुडने लगे हैं, उन्हें उनका साथ अच्छा लगने लगा है। जिस संरक्षण का उनके जीवन में अभाव था वह अब माता-पिता के सानिध्य से खत्म होने लगा है। उन्हें अब लगने लगा है कि एक वही हैं जो उन्हें हर किस्म की परेशानी में संभाल सकते हैं। यह बेहद आश्चर्य की बात है कि वहां के 94 प्रतिशत युवा अब रोज अपने माता-पिता को अपनी लोकेशन्स शेयर करते हैं। इस बहाने वे नियमित उनसे बात भी कर लेते हैं और एक सुकून भी महसूस करने लगे हैं। ज़िन्दगी में और क्या चाहिए, बस यही, जिसके लिए वे बरसों तरसते रहे, इसीलिए अब पश्चिम पूरब की तरफ लौट रहा है। पूरब अर्थात भारत। भारत अर्थात रिश्तों के रसमय संसार का अमृत-कुंड। आज अमेरिका रिश्तों के जिस अतुलनीय एहसास को जीने के लिए लालायित है, वह भारत की ही देन है।
आज से 45-50 साल पहले फिल्म कलाकार मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ” पूरब और पश्चिम ” में रिश्तों के इसी स्पन्दन को छूआ था। कितनी अजीब बात है कि वे भारत की खुशबू को समेट कर ले गए और हम उनकी जूठन को अपनी जिंदगी में उतार लाए। गांवों की बात छोड़ दें तो भारत के शहरों में ज़िन्दगी टू-रूम सेट में सिमट कर रह गई है। जहां मियां बीवी और उनके एक या दो बच्चे बस यही है उनकी जिंदगी। बच्चों के बाप के जीवन में उसके अपने माता-पिता के लिए अब कोई जगह नहीं। न घर में, और न ही दिल में। अभी दो दिन पहले ही यूपी के जागरण अखबार में लुधियाना की ऐसी ही घटना प्रकाशित हुई जिसमें एक वकील अंकुर वर्मा को अपनी असहाय वृद्ध मां से बुरी तरह मारपीट करने पर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अंकुर वर्मा के साथ उसकी पत्नी सुधा वर्मा एवं नाबालिग पोते करिश्मा के खिलाफ भी केस दर्ज कर लिया क्योंकि वे भी उस वृद्धा से मारपीट करते थे। अंकुर वर्मा के इस जघन्य अपराध पर बार एसोसिएशन ऑफ लुधियाना ने उसे बार की सदस्यता से निलंबित कर दिया। 85 वर्षीय मां के शरीर पर मारपीट करने के स्पष्ट निशान पाए गए। ये तो हाल ही का मामला है, देश में ऐसे अनेकों मामले हैं जो आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनते हैं।
दस-पंद्रह दिन पहले मैंने अपने ऐसे ही एक ब्लॉग में लिखा था कि कनाडा में रह रहे एक बेटे ने लखनऊ में मर गए अपने पिता की मुखाग्नि क्रिया में आनलाइन कंडोलेंस दी। मृत बाप बरसों से अकेला रह रहा था। उसका शरीर कई बीमारियों से ग्रस्त था। उसे नियमित रूप से एक सहारे की जरूरत थी, लेकिन कोई नहीं था। अपने बेटे को देखने और उसकी आवाज सुनने को वह तरसता रहता था। और इसी उम्मीद में नाउम्मीदी ने उसकी जान ले ली। उसका अंतिम संस्कार भी उसकी बेटी और दामाद ने किया।
ये है आधुनिकता की दौड़ में जी रहे हमारे कुछ भारतीयों की हकीकत। कई करोड़पति घरानों के वृद्ध, वृध्दाश्रम में बेटे के इंतजार में तड़प-तड़प कर मर गए। कुछ बुजुर्गो की हकीकत तो इतनी दर्दनाक रही कि उनका अंतिम क्रियाकर्म भी वृद्धाश्रम के लोगों ने किया, और तो और यहां तक कि उनके अस्थि कलश तक लेने कोई नहीं आया।
भारत में इस समय 60 साल पार वृद्धों की संख्या 10 करोड से अधिक है। संयुक्त राष्ट्र के नेशनल पोपुलेशन फंड के अनुसार 2061 तक भारत में वृद्धों की संख्या 42.5 करोड हो जाएगी। विश्व में एक मात्र यही ऐसा देश है जहां वृद्धों की स्थिति सबसे दयनीय है और वह भी उनकी अपनी औलादों के कारण। खास कर शहरों में। यहां शहरों की खुदगर्ज आधुनिक जीवन शैली ने वृद्धों को जिंदा लाश बना कर रख दिया है। जहां उनके दिल के दर्द और मौत से उनके खून के रिश्तों को भी कोई सरोकार नहीं रहा। एक साल पहले मैंने अपने ब्लॉग में ऐसी ही अनेक सच्चाइयों का जिक्र करते हुए लिखा था कि अपने जमाने के मशहूर फिल्म अभिनेता प्रदीप कुमार कोलकाता के खैराती अस्पताल में भर्ती थे, जिनका इलाज उनके एक प्रशंसक ने कराया था। यही नहीं उनकी मृत्यु पर उनके क्रियाकर्म की व्यवस्था भी उसी ने की थी। यह समाचार तब की कुछ फिल्म पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था।

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