Politics News: डोटासरा का अच्छा व्यक्ति बिगड़ गया — भाजपा

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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की अनर्गल बयानबाजी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “एक अच्छा व्यक्ति बिगड़ गया है।” डोटासरा कभी एक उभरते हुए और प्रतिभाशाली नेता माने जाते थे, लेकिन विपक्ष में रहते हुए उनकी भूमिका कमजोर होती जा रही है। उन्होंने हाल के समय में सदन में और सार्वजनिक मंचों पर जिस तरह की भाषा और व्यवहार अपनाया है, वह लोकतांत्रिक परम्पराओं के खिलाफ है। राठौड़ ने कहा कि “मैं स्वयं विधानसभा में डोटासरा के साथ रहा हूं। पहले हम उन्हें एक परिपक्व और जिम्मेदार नेता मानते थे, लेकिन आज वे बहुत हल्के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं और आसन के प्रति भी गलत व्यवहार अपना रहे हैं, जो मर्यादा के विपरीत है। गोविंद सिंह डोटासरा को बार-बार सदन में व्यवधान डालने की आदत है, उन्हें कैलाश मेघवाल जी के समय भी निष्कासित किया गया था। इसके अलावा सदन में नहीं आना और फिर विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की बात करना, ये सब जनतंत्र को कमजोर करने वाली प्रवृत्तियाँ हैं।
श्री राठौड़ ने कहा कि डोटासरा अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेन्द्र पारीक के खिलाफ जिस प्रकार से सार्वजनिक रूप से बयानबाजी कर रहे हैं, वह अत्यंत निंदनीय है। पारीक जी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और संसदीय परम्पराओं को भलीभांति समझते हैं। उन्हें इस प्रकार सार्वजनिक रूप से अपमानित करना अनुचित है। पार्टी के आंतरिक मुद्दों को सार्वजनिक मंचों पर लाना दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे पार्टी में टूट की स्थिति उत्पन्न हो रही है। उन्होंने कहा कि “जैसे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने ही उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को ‘नाकारा’ और ‘निक्कमा’ कहा था, उसके बाद वे दोनों एक मंच पर मन से नहीं आ सके। उसी तरह डोटासरा ने जो शब्द पारीक जी के लिए कहे, वे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने वाले हैं और उनके आपसी संबंधों में भी दरार डालने वाले हैं।”
उन्होने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, देश के प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों उपयोग करना बेहद आपत्तिजनक और असंसदीय है। राजनीति में भाषा की मर्यादा बनी रहनी चाहिए। विरोध करना लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन भाषा का चयन मर्यादित और आदर्श होना चाहिए। राठौड़ ने कहा कि राजनीति में जिस प्रकार से भाषा का स्तर गिरा है, वह चिंताजनक है और इसकी कड़ी निंदा होनी चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को इस पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि मर्यादित भाषा और व्यवहार से ही लोकतंत्र की गरिमा बनी रह सकती है।

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