———अनिल त्रिवेदी
प्रदेश में राज्य सरकार के राजस्थान सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ने अशोक स्तंभ के प्रचार—प्रसार के लिये अभिनव पहल की है। यह कार्य अतिरिक्त निदेशक प्रशासन एवं पदेन शासन उप सचिव गोरधन लाल शर्मा के अथक परीश्रम और प्रतिबद्धता से संभव हो पाया है। उन्होने विभाग में अशोक स्तंभ के मानमर्यादा को बढ़ाने लिये नये आयाम स्थापित किया है। श्री शर्मा ने अपने जीवन काल में दो बड़े कार्य किये हैं। जिससे उन्होने अपने परिवार, समाज और प्रदेश का मान बढ़ाया है। जिसमें पहला कार्य वो है जब श्री शर्मा राजस्थान प्रशासनिक सेवा में अधिकारी बने और दुसरा कार्य अब किया जब उन्होने कार्यालय के बाहर गेट पर लगने वाली नेम प्लेट पर अशोक स्तंभ का चिन्ह लगाया है। इससे अशोक स्तंभ को अपनी खोई हुई पहचान मिल गई है और इस चिन्ह को चार—चांद लग गये। अतिरिक्त निदेशक ने समस्त प्रदेश में ही नहीं अपितु देश भर में अशोक स्तंभ को एक नई पहचान दी है। देश—विदेश तक एक संदेश दिया है कि अशोक स्तंभ का प्रचार—प्रसार इस तरह से भी किया जा सकता है। इससे राष्ट्र का गौरव भी बढ़ा है।
भारत सरकार को एक अधिसूचना जारी कर आदेश प्रसरित करना चाहिये कि देश के महामहिम राष्ट्रपति सहित सभी राज्यों के राज्यपाल महोदयों को अपनी नेम प्लेट के साथ अशोक स्तंभ का उपयोग जरूर करें। महामहिम राष्ट्रपति सहित सभी राज्यों के राज्यपाल महोदय ही क्यों देश के यशस्वी प्रधानमंत्री सहित उनके समस्त मंत्री मंडल को भी अपने—अपने कार्यालयों के गेट पर आशोक स्तंभ के साथ अपना नाम लिखना चाहिए।
मैं तो कहता हूं कि ये सभी ही क्यों? देश के सभी मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, शासन सचिव, उप सचिव यानि कि सभी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भी अपने कार्यालयों के गेट पर अपने नाम के साथ अशोक स्तंभ लगी तख्ती लटका देनी चाहिए। इतना ही नहीं देश के सभी राज्यों के प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भी अपने नाम के साथ अशोक स्तंभ को कार्यालय के गेट पर लटका देना चाहिए जैसे प्रदेश में राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गोरधन लाल शर्मा ने टांक रखा है। ऐसा करने से भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में अशोक स्तंभ का गौरव तो बढ़ेगा ही देश के इतिहास के लिये प्रासंगिक भी होगा।
चेतावनी :— राष्ट्रीय प्रतीक का अनुचित प्रयोग करने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। ‘प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950’ और ‘भारत का राज्य प्रतीक (अनुचित प्रयोग का प्रतिषेध) अधिनियम, 2005’ जैसे कानूनों के तहत ऐसा करना अपराध माना जाता है। उल्लंघन के लिए जेल की सजा और जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं।




