Jaipur News: जनता त्रस्त – सरकार मस्त: भ्रस्टाचार, निकम्मेपन और बाहरी अफसरों’ की अंधी तैनाती ने बंटाधार कर दिया है राजधानी का

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—महेश झालानी

जयपुर की इस बार की बरसात ने प्रशासनिक निकम्मेपन की परतें खोलकर रख दी हैं। जिस राजधानी की पहचान सुव्यवस्थित सड़कें, ऐतिहासिक धरोहरें और आधुनिक सुविधाएं थीं, वहीं अब हर साल बरसात आते ही घुटनों तक पानी, सीवर उफान और ट्रैफिक जाम की कहानियां आम हो गई हैं। लेकिन 2025 की बरसात सिर्फ़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं थी, यह सरकार, नगरीय विकास विभाग और अधिकारियों की घोर विफलता का ‘लाइव सबूत’ बनकर उभरी। इस बार जनता के गुस्से का केन्द्र केवल व्यवस्था नहीं, बल्कि वे ‘बाहरी अफसर’ बन रहे हैं जिन्हें जयपुर के भूगोल, मानसून की प्रकृति और स्थानीय जरूरतों की तनिक भी जानकारी नहीं है।
हकीकत यह है कि जयपुर की नगर व्यवस्था की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वे कंधे या तो असंवेदनशील हैं या पूरी तरह से अज्ञान। नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा से लेकर सचिव देवाशीष पृष्टि, जेडीए की आयुक्त आनंदी और सचिव निशांत जैन, चारों शीर्ष पदों पर बैठे ये अधिकारी या तो गैर-राजस्थानी हैं या राजधानी की शहरी जटिलताओं से पूरी तरह अनभिज्ञ। इनमें से किसी को भी जयपुर की भूगर्भीय बनावट, पानी की निकासी का पैटर्न, पुराने नालों की संरचना या स्थानीय ड्रेनेज नेटवर्क की तकनीकी समझ नहीं है। जब अफसरशाही की रीढ़ ही बाहरी और अनुभवहीन हो, तो परिणाम यही होता है कि शहर हर बारिश में दम तोड़ देता है।
मजे की बात यह है कि जब बारिश शुरू हो चुकी थी, देवाशीष पृष्टि को उस वक्त यूडीएच का प्रमुख शासन सचिव नियुक्त किया गया था। ये मूलतः उड़ीसा के रहने वाले है। इन्हें जयपुर या राजस्थान के किसी भी शहर की एबीसीडी तक पता नही है। सचिवालय के भीतर माने जाने वाले सूत्रों के अनुसार, वे पूरी तरह ‘फाइल-बेस्ड निर्णयों’ पर निर्भर हैं और ग्राउंड रियलिटी से उनका कोई वास्ता नहीं है। कमोबेश यही हाल आनंदी और निशांत जैन का है। आनंदी तमिलनाडु की तो निशांत जैन यूपी के रहने वाले है। आनंदी ईमानदार तो है, लेकिन जेडीसी के लायक नही बताई जाती। जबकि निशांत जैन के बारे में कहा जाता है कि इनसे टालू और अकर्मण्य अफसर जेडीए में इससे पहले नियुक्त नही हुआ।
नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा की अकर्मण्यता और अज्ञानता के बारे में अधिकांश मंत्री और विधायक तक बखूबी जानते है। इनकी खूबी है कि ये जाट है। इन्हें शांति धारीवाल बनने के लिए बीसो साल लग जाएंगे। धारीवाल ने विकास किया था, जबकि खर्रा शहरों का “विनाश” करने पर आमादा है। उन्होंने अब तक एक भी बार मानसून के दौरान जलभराव से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा नहीं किया हैं। न कोई निरीक्षण, न कोई राहत समीक्षा बैठक। मंत्री महोदय की चुप्पी इस बात का संकेत है कि या तो वे हालात की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं, या फिर जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं। अथवा इस योग्य ही नही है कि वे इस विभाग का नेतृत्व कर सके ।
जनता सवाल पूछ रही है —क्या नगरीय विकास केवल फाइलों में योजनाएं बनाने तक सीमित है? जब राजधानी ही बेहाल हो, तो बाकी शहरों की स्थिति की कल्पना की जा सकती है। अफसरों की लापरवाही और सरकार की उदासीनता के चलते जयपुर के कई मोहल्लों में जलभराव से लोग अस्पताल नहीं पहुंच सके, तब अफसर लोग सचिवालय में “मीटिंग-मीटिंग” खेलते हुए ‘वर्क फ्रॉम होम’ पर थे।
जयपुर विकास प्राधिकरण की कमिश्नर आनंदी, जिन पर जयपुर शहर की सबसे अहम विकास परियोजनाओं और ड्रेनेज सिस्टम की जिम्मेदारी है, वे भी शहर से न तो भावनात्मक रूप से जुड़ी हैं, न ही तकनीकी रूप से। जानकारों के अनुसार, आनंदी द्वारा शुरू की गई कई योजनाएं आधी-अधूरी हैं, जिनमें 22 करोड़ की पाइपलाइन योजना भी शामिल है जो उलटी ढलान पर बिछा दी गई। इससे जलनिकासी नहीं हो सकी, बल्कि पानी रुक गया और मोहल्ले डूब गए। उनके नेतृत्व में जेडीए का कामकाज केवल कागज़ी आंकड़ों और स्लाइड प्रजेंटेशन तक सीमित है। दरअसल सरकार द्वारा सिस्टम में ऐसे अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं जिन्हें शहर की गलियों, नागरिक जरूरतों और भौगोलिक संरचना का आधारभूत ज्ञान नहीं है । योजनाएं कागज़ों पर बनती हैं और जमीन पर डूब जाती हैं।
अब आवश्यकता है कि नगरीय विकास जैसे संवेदनशील विभागों में ऐसे स्थानीय अधिकारियों नियुक्ति हो, जिन्हें जयपुर की सड़कों, नालों, और बस्तियों की पहचान हो। जो न सिर्फ़ नक्शा, बल्कि नब्ज़ भी पढ़ सकें। जब तक मंत्रालय और प्रशासन में अनुभवी, लोकल अफसरों को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक जयपुर हर साल बारिश में भीगता रहेगा और जनता गुस्से में उबलती रहेगी।
जयपुर की बर्बादी केवल बादलों से नहीं, बर्बाद होती नीतियों, लापरवाह नेताओं और अजनबी अफसरों से हो रही है। बरसात ने तो केवल पर्दा उठाया है, असली कारण तो वो नेतृत्व है, जिसे न इस शहर की पहचान से कोई लगाव है और न इसकी समस्याओं से। अगर सरकार अब भी नहीं चेती, तो जनता अगली बारिश से पहले ही ‘प्रशासनिक सफाई’ कर देगी “वोट की झाड़ू से”।

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