राज्य सरकार ने शुक्रवार को राजस्थान जन विश्वास (उपबंधों का संशोधन) अध्यादेश-2025 के संबंध में गजट नोटिफिकेशन जारी किया। इस अध्यादेश के माध्यम से 11 विभिन्न अधिनियमों में मामूली उल्लंघन या तकनीकी गलती के लिए कारावास जैसे आपराधिक दण्ड हटा कर उनके स्थान पर पेनल्टी का प्रावधान किया गया है। उल्लेखनीय है कि गत 3 दिसंबर को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमण्डल की सभा में इन अध्यादेश का अनुमोदन किया गया था।
भारत सरकार के जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम-2023 की तर्ज पर राज्य में भी राजस्थान जन विश्वास (उपबंधों का संशोधन) अध्यादेश- 2025 का प्रारूप तैयार किया गया है। इससे ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा मिलने के साथ ही मुकदमेबाजी में भी कमी आएगी।
इन 11 अधिनियमों से हटाये आपराधिक प्रावधान:—
राजस्थान वन अधिनियम-1953, राजस्थान अभिधृति अधिनियम-1955, राजस्थान नौचालन विनियमन अधिनियम-1956, राजस्थान भाण्डागार अधिनियम-1958, राजस्थान राज्य सहायता (उद्योग) अधिनियम-1961, राजस्थान विद्युत (शुल्क) अधिनियम-1962, राजस्थान साहूकार अधिनियम-1963, राजस्थान गैर-सरकारी शैक्षिक संस्था अधिनियम-1989, राजस्थान स्टाम्प अधिनियम-1998, राजस्थान नगरपालिका अधिनियम-2009, राजस्थान जल प्रदाय और मलवहन बोर्ड अधिनियम-2018 शामिल हैं।
पहले राजस्थान वन अधिनियम-1953 में धारा 26 (1) (ए) में वन भूमि में मवेशी चराने पर अब तक 6 माह तक कारावास या 500 रुपए तक जुर्माने अथवा दोनों दण्ड का प्रावधान था। संशोधन के बाद अब इस उल्लंघन पर जुर्माना ही लगाया जाएगा, कारावास का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है। वन को हुए नुकसान के लिए वन अधिकारी द्वारा नियमानुसार निर्धारित क्षतिपूर्ति भी देनी होगी। इस संशोधन से उन आदिवासियों और ग्रामीणों को लाभ होगा जो अनजाने में मवेशी चराते हुए वन भूमि में प्रवेश कर जाते हैं।
इसी प्रकार राजस्थान राज्य सहायता (उद्योग) अधिनियम-1961 में सहायता प्राप्त करने वाले उद्योग के प्रभारी पर मामूली प्रक्रियात्मक अपराधों, जैसे बहीखाते, खाते या अन्य दस्तावेज निरीक्षण के लिए प्रस्तुत न करने पर कारावास का प्रावधान था। इन आपराधिक प्रावधानों को अब अधिनियम से हटा कर अर्थदण्ड तक सीमित किया गया है। वहीं जयपुर वाटर सप्लाय एण्ड सीवरेज बोर्ड अधिनियम-2018 में जल की बर्बादी, दुरुपयोग, गैर-घरेलू कार्यों के लिए उपयोग, बोर्ड की सीवरेज लाइन में रुकावट डालने, बिना लिखित अनुमति सीवरलाइन से कनेक्शन जोड़ने जैसे कृत्यों पर कारावास का प्रावधान था, जिसे हटाते हुए अर्थदण्ड के प्रावधान तक सीमित किया गया है।




