प्रदेश में वैज्ञानिकों को ने लुप्त हुई पौराणिक सरस्वती नदी को खोज निकाला है। यह खोज राजस्थान के लिये वरदान साबित होगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि राजस्थान मेंं अब सिंधु, झेलम और चिनाब जैसी नदियों का पानी सरस्वती के पुराने बहाव क्षेत्र के जरिए दूर तक के क्षेत्र में पहुंचाया जा सकेगा। यह करिश्मा बिट्स मेसरा और रांची के वैज्ञानिकों ने करके दिखाया है।
बिट्स के रिमोट सेंसिंग विभागाध्यक्ष डॉ. वीएस राठौड़ ने बताया कि हमारी टीम ने राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, पाली, जोधपुर, बीकानेर, नागौर, अजमेर, टोंक, जयपुर, सीकर, झुंझुनू, चूरू, गंगानगर और हनुमानगढ़ को अध्ययन क्षेत्र बनाया। यह क्षेत्र 3.70 लाख वर्ग किमी का है। डॉ. राठौड़ ने बताया कि इस कार्य के लिये हमने उपग्रहों से 614 तस्वीरें और डाटा से विश्लेषण किया है। उन्होने बताया कि सरस्वती का क्षेत्र बड़ी मात्रा में रेत से ढका है और उसे पहचानने के लिए तीन उपग्रहों से मिली उच्च स्तरीय तस्वीरों और सिंथेटिक अपर्चर रेडार सार के डाटा की मदद ली। ये रेडार जमीन में कई मीटर भीतर तक विश्लेषण करसकती है। अन्होने बताया कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और अमरीकी जियोलॉजिकल सर्वे के उपग्रहों द्वारा मार्ग का विश्लेषण किया गया। इनमें सरस्वती और सहायक धाराओं के बहाव साफ नजर आया है।
बिट्स के रिमोट सेंसिंग टीम के अनुसार राजस्थान में सोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि पहली मुख्यधारा अनूपगढ़ के निकट घग्घर नदी से उत्पन्न हुइ और बेरियावाली, बहला, तनोट और जैसलमेर होते हुए अरब सागर में गिरती थी। वहीं दूसरी मुख्यधारा जैसलमेर जिले में देखी गई जो बहला और सत्तो के पास से होती हुई पहली धारा से मिलती थी। यहां से कई सहायक धाराएं भी बनती नजर आईं ये धाराएं जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर से मोहनगढ़ तक सरस्वती नदी का पानी पहुंचाती थी। आपको बतादें कि मोहनगढ़ में पिछले साल एक खुदाई के दौरान बड़ी मात्रा में पानी फूट पड़ा था। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि कुछ धाराएं बीकानेर, हनुमानगढ, चूरू व झुंझुनू होते हुए सूरतगढ़ के पास सरस्वती नदी में मिलती थी।