राष्ट्रीय एकता दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि अखंड भारत की आत्मा को नमन करने का दिवस है। यह वह अवसर है, जब हम स्वतंत्र भारत की एकता, अखंडता और राष्ट्रनिर्माण के शिल्पी लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अदम्य संकल्प, दूरदर्शिता और संगठन कौशल को स्मरण करते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद बिखरी हुई रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत को उसकी भौगोलिक और राष्ट्रीय एकता प्रदान की।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी— संकल्प और श्रद्धा का प्रतीकः
गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर स्थित, 182 मीटर ऊँची, दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी केवल स्टील और कंक्रीट से बनी एक स्मारक नहीं अपितु यह उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है जिसने भारत को उसकी क्षेत्रीय आत्मा दी। यह उन मूल्यों की याद दिलाता है जो हमें एक राष्ट्र के रूप में जोड़ते हैं। हर साल 31 अक्टूबर को राष्ट्र अपने लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को श्रद्धांजलि देने के लिए रुकता है। उनकी दूरदर्शिता, साहस और कूटनीतिक कौशल ने एक खंडित उपमहाद्वीप को एक अखंड देश में बदल दिया। इस दिन को एकता दिवस या राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो न केवल पटेल के नेतृत्व को बल्कि विविधतापूर्ण होते हुए भी अविभाज्य भारत के चिरस्थायी विचार को भी ट्रिब्यूट है। देश में पनपने वाले क्षेत्रवाद, सांप्रदायिक विभाजन और राजनीतिक ध्रुवीकरण हमारी सामूहिक भावना की परीक्षा लेते रहते हैं, सरदार पटेल का मूलमंत्र ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत‘ का विचार आज भी हमारा मार्गदर्शक बना हुआ है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की महानता समानता में नहीं बल्कि साझा मूल्यों और पारस्परिक सम्मान के माध्यम से अनगिनत मतभेदों को एक साथ रखने की उसकी क्षमता में निहित है।
राष्ट्र को जोड़ने वाली लौह इच्छाशक्ति:
वर्ष 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली तो जश्न के साथ एक बड़ी चुनौती भी आई। अंग्रेज़ 562 रियासतें छोड़ गए थे, जिनमें से हर एक के अपने शासक और आकांक्षाएं थीं। अखंड भारत का सपना आसानी से अराजकता और विभाजन में बदल सकता था। जब देश में अंग्रेजों की ”फूट डालो-राज करो” की नीति का जहर घोल रहे थे, उस महत्वपूर्ण क्षण में सरदार पटेल राष्ट्रीय एकीकरण के सूत्रधार के रूप में आगे आए। दृढ़ता और कूटनीति के अद्भुत मिश्रण से, उन्होंने अधिकांश शासकों को भारत में विलय के लिए राजी कर लिया और विरोध करने वालों से निर्णायक रूप से सर्मपण करवा दिया। हैदराबाद, जूनागढ़ और अन्य दुर्गम क्षेत्रों से निपटने में उनके संयम, चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति का संगम देखने को मिला। सरदार पटेल की सफलता केवल प्रशासनिक ही नहीं थी, यह दूरदर्शी भी थी।
सांझी सांस्कृतिक विरासत और संस्थागत एकता के संवाहक:
सरदार पटेल की सांझी सांस्कृतिक विरासत को इतिहास के पन्नों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह देश की संरचना, देश की सिविल सेवाओं में, इसके संघीय ढाँचे में और इसके राष्ट्रीय चरित्र में समाहित है। अपने सार्वजनिक जीवन में उनका अनुशासन, कर्तव्य और राष्ट्रहित पर हमेशा फोकस रहता था जो आज भी हमारे सार्वजनिक जीवन का मार्गदर्शन करता है।
एकता दिवस का अर्थ और प्रासंगिकता:
एकता दिवस मनाने का अर्थ है राष्ट्रवाद के उस विचार का उत्सव मनाना जो जाति, पंथ, भाषा या क्षेत्र की सभी बाधाओं से परे है। यह प्रत्येक नागरिक से संकीर्ण निष्ठाओं से ऊपर उठकर भारत के व्यापक आदर्श के प्रति प्रतिबद्ध होने का आह्वान करता है। हर साल इस दिन को मनाते हुए हमें याद रखना चाहिए कि एकता विरासत में नहीं मिलती, इसे पोषित करना होता है। यह एक रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारी है कि हम एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करें, विविधता का सम्मान कैसे करें और राष्ट्र को स्वार्थ से ऊपर कैसे रखें। सरदार वल्लभभाई पटेल ने हमें एक अखंड भारत दिया। इसे सशक्त, समावेशी और जीवंत बनाए रखने का दायित्व हम पर है। एकता दिवस की भावना हमें याद दिलाती है कि केवल एक अखंड भारत ही वास्तव में एक महान भारत, एक भारत, महान भारत बन सकता है।
कांस्य में डाली गई एक विरासत:
2018 में अपने उद्घाटन के बाद से, यह प्रतिमा वार्षिक राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह का केंद्र बन गई है, जहाँ देश भर से नागरिक, पुलिस व सैन्य बलों के सदस्य, युवा समूह और सांस्कृतिक कलाकार आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एकता दिवस संबोधन में कहा था, ”स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी अतीत का स्मारक नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक प्रतिज्ञा है।”
संस्थागत विकास से डाली सशक्त भारत की नींव:
सरदार पटेल का एकता का दृष्टिकोण मज़बूत संस्थाओं पर उनके ज़ोर से जुड़ा हुआ था। अखिल भारतीय सेवाओं का गठन प्रशासनिक निरंतरता और राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित करने का एक सोचा-समझा प्रयास था। अधिकारियों के पहले बैच को दिए गए उनके शब्द, ”जनता की सेवा और राष्ट्र की अखंडता की भावना बनाए रखें” आज भी शासन में एक मार्गदर्शक सिद्धांत बने हुए हैं।
सुशासन के लिए दी स्टील फ्रेम ऑफ इण्डिया की अवधारणा:
21 अप्रैल, 1947 को नई दिल्ली के मेटकाफ हाउस में भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रथम बैच को संबोधित करते हुए सरदार पटेल ने कहा था “आप भारत के स्टील फ्रेम हैं, आप पर इस राष्ट्र की एकता और सुशासन का दायित्व है।” उनके इसी संदेश की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 21 अप्रैल को राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस मनाया जाता है, जहाँ शासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। यह परंपरा उनके सुशासन और जवाबदेही के सिद्धांतों की जीवंत विरासत है।
विकसित भारत 2047 का संकल्प:
जैसे-जैसे भारत 2047 में अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, एकता का असली पैमाना भौतिक भूभाग नहीं, बल्कि साझा उद्देश्य है। जिस विचार ने कभी 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोया था, अब उसे 145 करोड़ सपनों को एक सूत्र में पिरोना होगा।सरदार पटेल की दूरदर्शिता 1947 में स्थिर नहीं हुई थी – यह भविष्यसूचक थी। एकता का उनका आह्वान आज भी भारत का राष्ट्रीय दिशासूचक है। इस राष्ट्रीय एकता दिवस पर आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम सरदार वल्लभभाई पटेल के आदर्शों पर चलते हुए भारत की विविधता में एकता, सांस्कृतिक गौरव, स्वदेशी मूल्यों, अखंडता और गौरवमयी इतिहास की ज्योति को प्रज्वलित कर सरदार पटेल के ’एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के सपने को सदा जीवंत रखेंगे।

लेखक – डॉ. गोरधन लाल शर्मा 
समाजशास्त्री, लेखक एवं राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी




