■ ओम माथुर ■
दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की वापसी के बाद अब कौन होगा मुख्यमंत्री के नाम पर मीडिया में कयासबाजी शुरू हो गई है। भाजपा यानी मोदी-शाह की रणनीति को मीडिया कभी भी समझ नहीं पाया,न समझ पाएगा।इसीलिए हर राज्य में भाजपा के चुनाव जीतने के बाद न्यूज चैनल फोकटी पंचायत करने बैठ जाते हैं। इन पंचायतों में कई-कई नाम सामने लाकर उनकी खूबियों और खामियां गिनाई जाती है। मानो भाजपा नेतृत्व इन बहसों को देखकर ही सीएम के नाम का फैसला करेगा। राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुंह की खाने के बाद भी मीडिया सुधरता नहीं है और कयासबाजी में कोई कसर नहीं छोड़ता। इन राज्यों में मीडिया ने जिन बड़े नामों को सीएम फेस माना था,उनमें किसी का चयन भाजपा ने नहीं किया। इनमें वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान जैसे दिग्गज नेता भी शामिल थे।
क्या ये संभव है कि दिल्ली चुनाव शुरू होने के साथ ही मोदी और शाह के दिलोदिमाग में या ना हो कि अगर पार्टी को बहुमत मिला,तो दिल्ली का सीएम कौन होगा? जो पार्टी हमेशा चुनावी मूड में रहती हो, जो पार्टी दूसरे राजनीतिक दलों से बहुत आगे की सोचती हो,वह सीएम फेस भी तय करके ही रखती ही होगी। लेकिन मीडिया भी क्या करें। कुछ तो दिखाना-बताना ही है। इसलिए दिल्ली में भी उसने अब तक करीब एक दर्जन दावेदारों को सामने ला दिया है। इनमें कुछ तो ऐसे भी है, जिन्हें खुद को अपना नाम दावेदारों में देखकर यकीन नहीं हो रहा होगा? अखबार भी इसी गप्पबाजी में उलझे हैं। इन दावेदारों के नामों का चयन मीडिया इस तरह करता है कि उसमें हर जाति का दावेदार शामिल हो जाए। जैसे दिल्ली में अब तक उसने जो सीएम दावेदार बताए हैं, उनमें प्रवेश वर्मा जाट, मनोज तिवारी पूर्वांचली,मनजिंदर सिरसा और आशीष सूद पंजाबी, सतीश उपाध्याय ब्राह्मण, विजेंद्र गुप्ता और जितेंद्र महाजन वैश्य शामिल है। इनके अलावा महिलाओं के नाम पर बांसुरी स्वराज और स्मृति ईरानी सहित वीरेंद्र सचदेवा का नाम भी चर्चाओं में लिया जा रहा है। इनमें मनोज तिवारी और स्वराज सांसद हैं और स्मृति ईरानी कुछ भी नहीं।
बीते सालों में कुछ राज्यों में मुख्यमंत्री चयन में भाजपा का जो ट्रैक रिकार्ड रहा है, उसमें वह बिल्कुल नए चेहरों को दाव लगाती रही है। इनमें फर्स्ट टाइमर या सैकंड टाइमर विधायक शामिल है़। इसमें राजस्थान में भजनलाल शर्मा पहली बार विधायक बने और मुख्यमंत्री बना दिए गए। मोहन यादव भी दूसरी बार के विधायक हैं और मध्य प्रदेश के सीएम बन गए। इसे भाजपा में नया नेतृत्व विकसित करने की कवायद के साथ-साथ मोदी और शाह के विश्वस्त नेताओं की राज्यों में तैनाती भी माना जाता रहा है। भले ही प्रक्रिया के तौर पर विधायकों की बैठक बुलाकर ही नेता का चयन भाजपा करती है। लेकिन यह किसी से छुपा नहीं है कि पर्यवेक्षक पर्ची में लिखे नाम लाकर उसे बैठक में खोलते हैं। राजस्थान में तो ये सबने देखा है। जब राजनाथ सिंह ने वसुंधरा राजे को सीएम के नाम की घोषणा की पर्ची दी, तो वह उसमें भजनलाल शर्मा का नाम देखकर चौंक पड़ी थी और यह उनके चेहरे से जाहिर हो रहा था। गुजरात में भूपेंद्र पटेल, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी भी ऐसे ही चयध थे। ऐसे में क्या दिल्ली में भी भाजपा किसी फेस को सरप्राइज पैकेज के रूप में लाएगी या किसी स्थापित नेता को अपना चेहरा बनाएगी ?
पिछली 5 बार से दिल्ली का मुख्यमंत्री नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीतने वाला उम्मीदवार बन रहा है। पहले दो बार शीला दीक्षित और उसके बाद तीन बार अरविंद केजरीवाल। इस बार इस सीट से भाजपा के जाट नेता प्रवेश शर्मा ने केजरीवाल को ही हराया है और दिल्ली के आसपास के राज्यों यानी हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाटों को संदेश देने के लिए उनकी दावेदारी सबसे ऊपर है। तीनों राज्यों में जाटों की संख्या काफी है और भाजपा वर्मा को सीएम बनाकर चार राज्यों के जाटों को साद सकती है। वह अमित शाह से मुलाकात कर चुके हैं,जबकि जेपी नड्डा से आज रात मुलाकात करने वाले हैं। वैसे भाजपा और कांग्रेस में मूल अंतर यही है कि कांग्रेस के कई नेता अपने राज्यों में चुनाव शुरू होने के साथ ही खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार बताने लग जाते हैं और भाजपा में किसी मुख्यमंत्री के मजबूत दावेदार से भी सवाल पूछा जाता है, तो यही कहता है आलकमान तय करेगा।