Ajmer News: प्राचीन और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय की आवश्यकता -विधानसभा

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अजमेर के महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान एवं आहार और पोषण संकाय द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी व जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के तत्वावधान में पादप आधारित न्यूट्रास्यूटिकल्स और चिकित्सा पर नवीन अनुसंधान विषय पर अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का भव्य आयोजन किया गया।
अध्यक्ष ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के साथ संबंध बहुत गहरा है। छात्र राजनीति के दौरान विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रयासरत भी रहे। विश्वविद्यालय शोध कार्य एवं नवाचारों में दिन प्रतिदिन नए आयाम स्थापित कर रहा है। विश्व में स्वास्थ्य को लेकर चुनौती बढ़ती जा रही है। आहार व पोषण केवल स्वास्थ्य से जुड़ा विषय नहीं बल्कि वैश्विक चिंतन का मुद्दा बन चुका है। ऎसे में प्राकृतिक पौधों के चिकित्सकीय गुणों पर शोध की आवश्यकता है। पूर्वजों द्वारा उपयोग में ली गई औषधियों और वनस्पतियों की जानकारी जुटाकर स्वयं को जानने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि पश्चिम की एलोपैथी पद्धति से रोग से ग्रसित होने पर उपचार होता है जबकि भारतीय आयुर्वेद में आहार एवं दैनिक दिनचर्या से रोग की निरोध क्षमता विकसित होती है। ऎसे में प्राचीन और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में समन्वय की आवश्यकता है। पादप आधारित शोध के विकास से हमे पादपों के पत्तों, तने, जड़े, फलों में विटामिन, खनिज, सहित बहुउपयोगी पौष्टिक तत्वों की जानकारी होगी। इससे हम इन्हें आहार में शामिल कर सकेंगे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्राकृतिक पौधों में मौजूद औषधीय गुणों का वैज्ञानिक शोध के माध्यम से समाज में उपयोग हो। प्रयोगशाला में किए शोध केवल कागजों तक सीमित नहीं रह जाए।
उन्होंने बताया कि भारत में प्राचीनकाल से औषधीय गुण वाले आहार का दैनिक सेवन किया जाता रहा है। इसमें एंटीबायोटिक गुण युक्त हल्दी, नीम का मंजन, मसाले शामिल है। इसके उपयोग से भारतीय दीर्घायु एवं स्वस्थ जीवन जीते थे। हमारी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों का विदेशी कंपनियों ने पेटेंट करवाकर धनार्जन किया। इसके लिए हमें डॉक्यूमेंट में भी मजबूत होने की आवश्यकता है।

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